Naari Dasha

by January 05, 2018 0 comments

क्या कहू की धीरज बंधक हैं
सपनो का वो आकाश नही
हर एक फिजा हारी गैरत
क्यो बेटी एैसी बेहाल हुई


कुछ कोख मे मारी जाती हैं
कुछ मरन जन्म पे पाती हैं
कुछ शिक्छा से अन्भिग्न कर
जीवन भर सताई जाती हैं


कुछ दहेज की हैं उत्पीड़ण
कुुछ ससुराल जला दी जाती हैं
कुछ नामर्दो के ऐसिड से
चेहरे गवाई पाती हैं


ये तीन तलाक हैं एक कहर
लहू सम आसू रूलाती हैंं
जब तब चला इन बानो को
इसे अबला बना दी जाती हैं


मर्दो की नपुंसकता
बलात्कार बन कर उभरी
नारी देवी का नाम जहा
उसकी कैसी तस्वीर नई


मै धूंधता हू उस भारत को
जहा तख्त पल्टे जाते थे
स्त्री के सम्मान की खातिर
महाभारत रच जाते थे


क्यो राम के इस पावन धरा पर
राम रीत हमे याद नही
शर्म करो अरे मर्दो
नरी परित्रात करे मर्द त्रास नही
हॉं कर्म करो एैसे जग मे
मर्द गर्व बने अभिषाप नही
हा गर्व बने अभिषाप नहीं …….

कवि श्रीमंत झा।

योगाचार्य विनय पुष्करणा

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

Vibudhah Tabloid is maintained and designed by Founder and Co-Founder of Vibudhah Organization to provide the real facts and truth of life. Our Aim is to provide you best knowledge with authentic reference.

  • |

0 comments:

Post a Comment

Thanks for Commenting.