नमस्कार,
आज का विषय है योग का इतिहास आशा करते हैं आपने हमारा पूर्व लिखित लेख को पसंद किया होगा।
तो आइए चलते हैं योग के इतिहास की ओर।
सर्वप्रथम योग क्या है?
योग एक संस्कृत शब्द है जो युज धातु से बना है जिसका अर्थ होता है मिलना मिलाना जोड़ना। जैसे हम कक्षा चार पांच में योगफल पड़ते हैं।
योग का उद्भव
योग का उद्भव आदि काल से हुआ। जब सृष्टि का निर्माण हुआ तभी से योग उत्पन्न हुआ। इसका सन्दर्भ वेदों में भी मिलता है अतः योग का वैदिक काल में भी काफी विकास हुआ। प्रथम योग वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। परन्तुं योग 10,000 वर्ष से अधिक प्राचीन है। अगर हम बात करे श्री मद्भागवत गीता की तो वो भी 500 वर्ष ईसापूर्व योग को कर्म एवं भक्ति के रूप में बता चुकी है।
योग का उद्भव सृष्टि के साथ ही हुआ तथा योग के आदि वक्त भगवान हृन्यगर्भ हुए। भगवान् हृन्यगर्भ सृष्टि निर्माता है। यां हम यह कहलें की सृष्टि का आरम्भ शून्य से हुआ और वो शून्य भगवान् हृन्यगर्भ हैं।और वो प्रथम योगी जिन्होंने अपने योग माया से सृष्टि का निर्माण किया।
हृन्यगर्भ
बहुत से लोगों इस नाम से अवगत है कि हृन्यगर्भ भगवान शिव का नाम है जिनको आदि देव भी कहा जाता है। आदि देव भाव जो सदैव से विराजमान हैं इन्हीं को सनातनाय भी कहा जाता है। कृपया शिव को शंकर से भावार्थः न करें। शिव एवं शक्ति सृष्टि के निर्माता हैं जिसमे शंकर उत्पन्न हुए, उनके उपरांत भगवान् विष्णु, उनके उपरांत ब्रह्मा।
योग का विकास
योग का विकास भगवान हृन्यगर्भ से आरम्भ हुआ। उनके द्वारा योगिक ध्यान एवं मुद्राएं उनके रूप शंकर/शिव/नटराज के द्वारा अपनायी गयी। उसके उपरांत योगेश्वर से यह ज्ञान श्री विष्णु को मिला और विष्णु जी ने जब ध्यान एवं भक्ति योग से भगवान् शिव को स्मरण किया तो वे भी योगेश्वर कहलाये क्यों की उन्होंने भक्ति योग का उद्भव किया। इसके उपरांत माँ गौरी के मन में जब जिज्ञासा हुई योग को जान्ने की तो उन्हीने भगवान शिव को इसके बारे में बताने को कहा तो भगवान शंकर ने योग का पूर्ण ज्ञान माँ गौरी को दिया तब यह ज्ञान जल में रह रही एक मछली ने भी सुन लिया जिसने अगले जन्म में मत्स्येन्द्रनाथ के रूप में जनम लिया योग एक योगी बने। उनसे इसका ज्ञान गोरक्षनाथ को मिला।
इसके साथ साथ ऋषियों में मिले ज्ञान को वेदों में भी संयोने का काम किया जिससे योग का विकास हमारे पुरातन वेदों से भी हुआ।ऋग्वेद में योग का प्रथम सन्दर्भ मिलता है। इसके उपरांत महर्षि पतंजलि जी ने योग के अंगों को एकत्रित करने का कार्य किया और योगसूत्र का निर्माण किया इस लिए प्रथम योगाचार्य के रूप में माह ऋषि पतंजलि को माना जाता है और प्रथम योगिक पुस्तक योग सूत्र माना जाता है जो केवल योग के ऊपर लिखी गयी।
योग के विकास में आदिकाल, वैदिक काल, दोहकाल तो रहा ही सहयोगी इसके साथ साथ आर्यावर्त में इसको उत्तर भारत के सारस्वत सभ्यता ने इसका प्रचार प्रसार किया। जहाँ से धीरे धीरे यह पहले ब्राह्मणों, योगोयों के जीवन शैली का अंग बना, उसके उपरांत श्री विवेकानंद के विदेश गमन के उपरांत पूर्ण विश्व में इसका ज्ञान जाने लगा। योगियों ने इसका अनुसरण किया जहाँ से यह एक जीवन शैली बनी और उसके उपरांत यह सनातन धर्म से जितने धर्म निकले सबमे एक अंग बन गया। और ऐसे ही यह मोडर्न काल में एक योग विषय के रूप में आगे आया।
खेद की बात
आप सोचते होंगे जब योग इतना प्रफुल्लित हो रहा है तो इसमें खेद की बात कहा से आ गयी। खेद की बात यह है कि आज कल के ढोंगी व्यक्ति योग को एक विषय समझने लगे हैं और आसनों को योग एवं योगा कहने लगे हैं जिनका योग से वास्तव में कोई ज्ञान अर्जित नहीं वो लोग भी बाबाओं और ढोंगियों का पल्ला पकड़ गलत राह पर चल पढ़ें हैं। उससे बुरा आज योग को एक खेल बना दिया है, योग जीवन शैली से एक खेल बन गया जहां आसान को एक शारीरिक व्ययाम के रूप में करवाया जा रहा है और किसी को ज्ञान है भी नहीं वो भी योग कराने में लगा है।
यम,नियम,प्रत्यहार, धारणा, ध्यान, समाधि का दूर दूर तक कोई ज्ञान देखने में नहीं आता। प्राणायाम भी पूर्ण रूप से नहीं बताया समझाया जाता अंतर्मुखी को लोग दार्शनिक बनाया जा रहा है। यह योग की उन्नति नहीं उसको एक और काले काल में ले जा रहा है यहाँ योग के मुख्य अंग पुनः लुप्त होते दिखाई दे रहे हैं।
अब आप निश्चय करें आपको क्या करना है योग सीखना है या आज का योगा?
उम्मीद है आपको लेख पसंद आएगा कृपया आपने सन्देश नीचे लिखें। धन्यवाद।
0 comments:
Post a Comment
Thanks for Commenting.