ब्रिटिश नववर्ष का करें बहिष्कार

by December 28, 2017 0 comments
सर्वप्रथम लघिमा पुष्करणा का प्रत्येक जन को हार्दिक अभिनंदन।

भारत का इतिहास:-

आज कल समाज मे बहुत सी भ्रांतियां उत्पन्न एवं प्रचलित हैं उनमेसे एक भ्रांति हैं नव वर्ष।
तो सभी सनातन अनुयायियों को मैं यह बताना चाहूंगी कि नव वर्ष भाव नए वर्ष को प्रणाम कर अपनी सभी भूतकाल की गतिविधियों, यादों को भुला कर एक नई दिशा की ओर बढ़ना। पंरन्तु कियोंकि भारत बहुत काल तक अंग्रेजों के शासनकाल से गुजरा है जिस कारण यहां के 80% लोग मूढ़ के भांति लाचार हो चुके हैं। कियोंकि भारत पर पहले मुगलों के समय से यहां की अर्थव्यवस्था को तोड़ने तथा यहां के इतिहासिक मंदिरों को तोड़ना और यहां के विद्वानों को मारना काटना और जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जाता था जिसमे जो सनातनी नहीं मानते थे उनकों कारावास में बंदी बना कर, चौंक में कटवा कर, यां उनकी बहू बेटियों को हवस का शिकार बना कर उनको उनकी संस्कृति से दूर कर दिया गया। पंरन्तु कुछ जगाहों पर फिर भी सनातनी सनातन धर्म नही छोड़े बस पहले से कुछ कम हुए पंरन्तु जब ब्रिटिश शासन आया तक इन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को चूर चूर कर दिया तथा भारतीय विज्ञान तथा संस्कृति को समाप्त करने लगे तो यहां के विद्वानों, महापुरषों, ब्राह्मणों, पंडितों ने विरोध किया। जिससे कुछ भारतीय उनका समर्थन करने आगे बढ़ने लगे तो अंग्रेजों ने नई राजनीति का प्रयोग करना प्रारम्भ किया। यह था फुट डालो राज करो। भाव सनातन धर्म मे वर्णित गुणों को इन्होंने चार जातियों में बदल दिया और उससे आरम्भ हुआ आपसी बैर, लड़ाई झगड़े।
इस सबका फायदा उठा उन्होंने वो किया जो मुगल कई वर्षों में नही कर पाए। वो था हमारी संस्कृति को तबाह करना और लोगों को गुमराह करना।
इसी कारण आज जो नववर्ष के प्रति भ्रांति उत्पन हुई है।

नववर्ष और भारत:-

इस समयकाल में अंग्रेजों का प्रभाव रहा और भारतीयों को न चाहते हुए भी उनकी बातें माननी पढ़ीं। उन्होंने हमारे समाज को बिखेर दिया फल स्वरूप भारतीयों ने अपने हितों के लिए उनकी बातें भी मानी उनके चालचलन तथा उनकी कार्यशैली भी अपनानी पढ़ी। ब्रिटिश कैलेंडर उसमे से एक था।

विज्ञानिक तथ्य:-

भारतीय संस्कृति के अनुसार भारती सकरात्मक सोच के अनुयायी होते हैं भाव सूर्योदय से ही स्वच्छ हो पूण्य कार्य प्रारम्भ करते हैं तथा सन्ध्या पान के पछात इशवंदना कर शयन करते हैं। जिसके विपरीत पश्चात संस्कृति के अनुयायी किसी भी समय के प्रतिबध्द न हो केवल मन के अनुसार चलते हैं वहीं सनातनी मन को वृति मुक्त कर ईश्वर प्राप्ति ओर अग्रसर होते हैं। भारत मे यह आरम्भ ऋतु परिवर्तन पर होता है। जब फसल पकने लग जाती है और नई फसल से नई उमंग उत्साह होता है तथा प्रकाश फैलने लगता है तब भारत का नव जीवन प्रारम्भ होता है। सूर्य का तेज़ अंधकार को समाप्त कर अपनी ऊर्जा से वातावर्ण के समस्त जीवाणुओं, बीमारियों को समाप्त कर जीवन रक्षक बन कर उभरता है। तब ही भारतीय नवर्ष प्रारम्भ होता है। इसके विपरीत ब्रिटिश नववर्ष जब भारत मे ठंड के मौसम में होता है और उसके फलस्वरूप अनेकों बैक्टेरियल, वायरल, फंगल कीटाणु, जीवाणु वातावरण में बीमारियों को उत्त्पन्न करने के कर्क पैदा करते हैं।

निष्कर्ष:-

अंततः यह तो स्पष्ट है कि भारतीय नववर्ष ब्रिटिश नववर्ष से भिन्न है। आपको यह भी जान कर आश्चर्य होगा कि हमारा भारतीय कैलेंडर ब्रिटिश कैलेंडर से भी भिन्न है। जिसकी विस्तृत जानकारी के लिए आगे ब्लॉग में लिखूंगी। अंग्रेजों ने हम पर इतने ज़ुल्म किए, हमारे भारत को लूटा, यहां की बहू बेटियों माताओं को लज्जित किया और हमारी संस्कृति को क्षति पहुंचाई और अपने कानून, व्यवस्था तथा कार्यशैली हम पर थोप गए। आज भी हम उन्हीं सब व्यवस्थाओं में बंधे गुलाम क्यों हैं? आएं उन व्सवस्थाओं को नकारें अपनी संस्कृति को अपनाएं। आज से ही ब्रिटिश नववर्ष का त्याग करें। और भारतीय नववर्ष को अपनाएं तथा पूर्ण हर्ष से मनाएं।
#लघिमा पुष्करणा

योगाचार्य विनय पुष्करणा

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

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