पाठशाला का अस्तित्व संकट में।

by September 16, 2017 0 comments

जिन व्यक्तियों को मेरे द्वारा लिखे इस लेख को पढ़ने के पश्चात बुरा लगे क्रोध आये कृपा वो अपना क्रोध अंतिम में बताए दिशा अनुसार शांत करें।

कुछ पुरुषों एवम स्त्रियों को श्लीलता का आभास कभी नही होता। परन्तु यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तब होता जब इस प्रकार के व्यक्ति शिक्षा स्थल भाव पाठशाला में होते।

1. विद्यालय में अगर कोई अध्यापक एवं अध्यापिका अगर प्रेम विवाह कर लें तो उससे बच्चे क्या सीखेंगे कह कर हम आलोचना करते हैं। पाठशाला से निकलने की बात एवं कुछ सन्दर्भों में निष्कासित भी कर दिया जाता है। यहां तक कुछ सहकर्मी वरिष्ठ न्यायाधीश बन उन्हें चरित्रहीन घोषित भी कर देते हैं।  परन्तु मुझे यह समझ नही आता क्यों इसका विरोध होता है? स्वयंवर अपराध है क्या? प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता है तो हम कैसे कह सकते इससे बच्चे बिगड़ेंगे। बिगाड़ तो उनव्यक्तियों की प्रतिक्रिया है जो इस विषय मे नकरात्मक सोच बच्चों तक पहुंचा रहा है। बच्चों को सतोगुण से इतना भरे की वो सही राह चुने न कि नकरात्मक सोच। उन्हे संस्कार देने एवम सक्षम करने का यत्न नही किया जाता बल्कि यह गलत गलत बोल उन्हें सही राह तो दिखाना भूल जाते हैं।
2. बहुत हैरानी की बात है कि जो लोग कहते हैं कि विद्यालय में यह प्रेम विवाह से गलत सोच जायगी उनकी अपनी सोच क्या कहती है आएं आपको बताते हैं।

➡एक व्यक्ति जो खुद एक बेटी का पिता है कहता है कि मेरी स्त्री अच्छी नहीं बोलना नही आता, मैं कुछ छुपाना नही चाहता पर वो यह वो वो बहुत प्रकार के लांक्षन लगाता है। क्या वो अध्यापक उचित सोच का है??

➡एक अध्यापक शिक्षा स्थल पर किसी और अध्यापक एवम किसी चिकित्सक से यह परामर्श ले रहा हो कि मेरा गुप्तांग कैसे सुडौल बन सकता है मैं क्या करूँ। एवं अश्लील भाषा का प्रयोग कर रहा हो। तो यह छात्र एवं छात्रा निर्माण है क्या? पाठशाला में क्या ऐसी बातें होनी चाहिए एवं करने वाला अध्यापक क्या उचित है? और विचित्र बात है कि वही अध्यापक प्रेम विवाह के विरुद्ध यह टिपण्णी देता है कि इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है और मेरी बेटी है मुझे सोचना पड़ता है।  क्या यह उचित सोच है?

➡एक अध्यापक पाठशाला में उच्चपद्ध पर विराजमान अगर आपको यह कहता मिल जाए कि वो अध्यापिका ने आज इस रंग का अंगवस्त्र पहना है, उस अध्यापिका के वक्षस्थल बहुत सुंदर है, और पाठशाला में ही स्त्री संभोग को ले कर और अध्यापकों से वार्तालाप करता हो। वो भी पाठशाला के अलग अलग स्थानों में तो क्या वो अध्यापक उचित है?

➡ एक अघ्यापक द्वारा हसीं मज़ाक के नाम पर एक अध्यापिका को पानी से भीगा दिया जाता है, और विचित्र बात यह अध्यापिका द्वारा विरोध करने पर भी नही हटा जाता और उससे विचित्र बात कि अध्यापिका द्वारा मुख्याध्यापक एवम प्रबंधक कमेटी तक याचिका नही पहुंचाई जाती। तो क्या यह अध्यापिका एवम अध्यापक उचित हैं? क्या यह छात्र छात्रा निर्माण कर रहें हैं?

➡ पाठशाला में ही कुछ अध्यापक एवं अध्यापिका आपस मे अश्लील विषयों पर दोहरी भाषा का प्रयोग करते हैं वो भी जब छात्र-छात्रा वहीं आसपास बैठे एवम घूम रहे हों। तो क्या वो अध्यापक हैं?

➡ पाठशाला में एक छात्रा द्वारा एक अध्यापक को राखी बांधने पर एक अध्यापिका द्वारा कहा जाना कि बच्चों और अध्यापक के एक निच्छित दूरी होनी चाहिए। और वही अध्यापिका उस छात्रा एवं अन्य छात्रा के घरों में दूरबाक्ष कर उनकों पाठशाला के अतिरिक्त शिक्षण के लिए अपने निजी शिक्षण स्थल हेतु दबाव बनाए। एवं बच्चों में भेदभाव करे। क्या वो अध्यापिका उचित है?

➡ एक अध्यापक अगर बच्चों को बोले कि आप उस अध्यापक के पास न जाया करो, मुझसे शिक्षा लो। और निजी तथा पाठशाला में बच्चों एवं उनके माता पिता को शिक्षण सामग्री (वस्तुओं )के नाम पर ठगे क्या यह उचित शिक्षा बच्चों तक जा रही है?

➡ कुछ अध्यापक बच्चों के समक्ष स्वयं ही अभद्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं। गाली दे कर अपनी सहकर्मी एवम शिष्यों तक को बुलाते हैं क्या यह देश निर्माण एवम छात्र निर्माण का कार्य कर रहा है?

ऐसे अध्यापकों के कारण ही शिक्षा एवं शिक्षक के प्रति छात्रों एवं छात्राओं का सन्मान कम कर रहा है। यह किसी पाठशाला विशेष की बात नही अपितु बहुत सारे पाठशालाओं का मेरा अनुभव एवम निष्कर्ष है।

कृपया माता पिता केवल अंग्रेजी माध्यम को न देखें, क्योकि अंग्रेजी माध्यम में न पड़ कर भी लीग वैज्ञानिक एवं चिकित्सक थे, परन्तु शिष्टता एवम संस्कार देखें। प्रत्येक शिक्षक का पाठशाला में कार्य एवम उनकी भाषा का सर्वेक्षण करें एवम यह पुष्टि करें कि वह विद्यालय आपके शिशु को उचित दिशा दे रहा है?

3. इन बातों पर भी दें ध्यान :-
➡ जो अध्यापक अपनी राष्ट्र भाषा मे बिना लिखे एवं पढ़े 5 मिनट भाषण नही दे सकता। वो क्या चरित्र निर्माण कर राष्ट्रीय प्रेम जगाएगा।
➡हिन्दी एवं संस्कृत विषय का अध्यापक अपने ही विषय भाव अपनी हो भाषा का शुद्ध उच्चारण न करता एवं कर पाता हो।
➡पाठशाला में कितने राष्ट्रीय प्रेम एवम एकता के कार्य होते हैं?
➡कितने अध्यापक आपस मे समाजिक रूप से साँझा हैं । क्योंकि समाजिक अस्वास्थ्य कभी व्यक्तित्व निर्माण नही करता। केवल सुंदर वस्त्र, महंगे तौर तरीके व्यक्तित्व नही दर्शाते।
➡संस्कार हेतु मनोवैज्ञानिक एवं योग में उचित शिक्षण प्राप्त व्यक्ति प्रत्येक पाठशाला में अनिवार्य रूप से होना चाहिए एवं प्रत्येक पाठशाला का संस्कारों पर एक ब्लॉग अवश्य होना चाहिए जिसमें प्रत्येक छात्र एवम छात्रा का सहयोग अनिवार्य सुनिक्षित किया जाना चाहिए।
➡बच्चों को चलचित्रों, भड़कीले संगीत एवम आधुनिक दूरबाक्ष एवम मनोरंजन उपकरणों से दूर रखा जाए इसके लिए मात पिता क्या कर रहें हैं तथा पाठशाला कैसे इसमे कार्य कर रहा है।

अंतः जिनको मेरे इस लेख को पढ़ कर क्रोध आया वे कृपया अपनी पत्नी अपने बेटे एवं बेटी के समक्ष बैठ इन बातों को पुनः दोहराएं, आपको समझने में सहज होगा। अपितु जिनको तब भी न समझ आए उनको भगवान सद्द्बुद्दी प्रधान करें।

डॉ विनय पुष्करणा
(विबुधः संस्थान भारत)
मनोविज्ञान विश्लेषण

योगाचार्य विनय पुष्करणा

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

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