Father Daughter Conversation

by January 23, 2018 0 comments
पिता:-
ढूंढूं मैं कैसे, सोके में पानी,
कहीं खो गई है, आज जवानी।
रोती हैं आँखें, तन्हा सभा है,
कैसे बताऊँ, सच्च यह कहानी।

पुत्री:-
बोलो बाबा बोलो रे बोलो..
बोलो बाबा बोलो से बोलो..
ज़िन्दगी के भेद तो खोलो...

पिता:-
देह प्रेम है यां, सच्चा है साथी,
पैसा बढ़ा है यां, दिया और बाती।
दबे दबे से लगते, अमीर जहां के,
फ़िज़ा भी न जाने, न सच्च दिखाती।

पुत्री:-
क्या मलतब है इसका समझाओ न बाबा....
लगता है मुझको क्यों डर, बताओ न बाबा...
सीने से लगा लो मुझको, जहां भुलादो,
आओ अपनी परी को, बाहों में समा लो।
क्यों ऐसा होता है बताओ न बाबा..
क्या कहना चाहते हो समझाओ न बाबा...

पिता:-
सरल न समझो, यह सामाज,
है चाहे, हर जन सर पर ताज़।
दो कौड़ी के हैं, ज़मीर बनाए,
बड़े बड़े बने, सब राजकुमार।
डोंगी बाबा गुरु, भगवान बने हैं,
धर्म के रक्षक, ही भक्षक इंसान बने हैं।

पुत्री:-
तो क्या बाबा सब ऐसे ही हैं,
क्या इंसान इन्हें ही कहते हैं?

पिता:-
न न गौरां सब न काले,
यह रंग तो हैं धन के पाले,
सतरंगी भी, इंसान यहां पे,
जो जीवन में, बनते हैं रखवाले।

पुत्री:-
तो बाबा, उनको कैसे जाने,
कौन अच्छा है, कैसे पहिचाने,
मुख पर तो कोई लिख नही आता,
कालक सवर्ण को कैसे छाने।

पिता:-
जिसने छल कपट न जाना,
झूठ फरेब मन में न ठाना।
प्रेम सन्मान से, मधुर हो वाणी,
सो जो ब्रह्म, को पहिचाना।
ऐसा जन जो, अर्शिया समाना,
मुख मुस्कान, दिल से नदाना।
करत जो सिमरन, नारी सनमाना,
सो मानुष अवल जन माना।

पुत्री:-
दोहरे चेहरे भी होते हैं क्या बाबा
पहिचाने कैसे हो क्या जाल क्या धागा।
कुछ तरकीब तो सुझाओ बेटी को,
कठिन पहेली अब सुलझाओ न बाबा।

पिता:-
ज्योतकिरण से, जहां स्वयं को जाने,
गीतांजलि जहां गुणों को बाँटे।
आओ दिव्य किरणों को छूकर,
अंधकार को जड़ों से काटें।
संस्कार ज्ञान सर्वोतम है,
ज्ञान ही सर्वजनों में बांटें।
शास्त्र, गुण विद्या प्राप्त करके,
आओ स्वयं ही स्वयं को पालें।

योगाचार्य विनय पुष्करणा

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

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