रोटी ताज़ा है यां बासी

by January 19, 2018 0 comments

बासी रोटी

एक धनी परिवार की कन्या 'तारा' का विवाह, एक सुयोग्य परिवार मे होता है,

लड़का पढ़ा लिखा और अति सुन्दर लेकिन बेरोजगार था।

परिवार की आर्थिक स्थति बहुत ही अच्छी थी जिसके कारण उसके माता -पिता उसे किसी भी कार्य करने के लिये नहीं कहते थे

और कहते थे कि बेटा 'जिगर' तू हमारी इकलौती संतान है, तेरे लिये तो हमने खूब सारा धन दौलत जोड़ दिया है और हम कमा रहे है, तू तो बस मज़े ले ।

इस बात को सुनकर लड़की 'तारा' बेहद चिंतित रहती मगर किसी से अपनी मन की व्यथा कह नहीं पाती ।

एक दिन एक महात्मा जो छ:माह मे फेरी लगाते थे उस घर पर पहुँच गये और बोले । माई एक रोटी की आस है..

लड़की 'तारा' रोटी ले कर महात्मा फ़क़ीर को देने चल पड़ी, सास भी दरवाजे पर ही खड़ी थी ।

महात्मा ने लड़की से कहा बेटी रोटी ताजा है या बासी..

लड़की 'तारा' ने जबाब दिया कि महाराज रोटी बासी है।

सास वही खड़ी सुन रही थी... और उसने कहा हरामखोर तुझे ताजी रोटी भी बासी दिखाई पड़ रही है ।

महात्मा चुप चाप घर से मुख मोड़ कर चल पड़ा और लड़की 'तारा' से बोल़ा कि बेटी मैं उस दिन वापस आऊंगा जब रोटी ताजी होगी ।

समय व्यतीत होता गया और तारा के पति 'जिगर' को कुछ समय बाद रोजगार मिल गया। अब तारा बहुत खुश रहने लगी

कुछ दिन बाद महात्मा जी वापस फेरी लगाने आये और तारा के ससुराल जाकर रोटी मांगने लगे,

महात्मा के लिये तारा रोटी लाती है ।

महात्मा जी का फिर वही सवाल था, बेटी रोटी ताजा है या बासी

तारा ने जवाब दिया की महात्मा जी रोटी एक दम ताजी है,

महात्मा ने रोटी ले ली और लड़की को खुशी से बहुत आशीर्वाद दिया।

सास दरवाजे पर खड़ी सुन रही थी और बोली की हरामखोर उस दिन तो रोटी बासी थी और आज ताजी.. वाह ! बहुत बढ़िया..

संत रुके और बोले अरी पगली तू क्या जाने तू तो अज्ञानी है तेरी बहू वास्तब मे बहुत होशियार है

जब मे पहले आया था तो इसने रोटी को बासी बताया था क्योकि यह तुम्हारे जोड़े और कमाये धन से गुजारा कर रहे थे जो इनके लिये बासी था ।

मगर अब तेरा बेटा रोजगार पर लग गया है और अपनी कमाई का ताजा धन लाता है इसलिये तेरी बहू ने पहले बासी और अब ताजी रोटी बताई ।

माँ बाप का जुड़ा धन किसी ओखे- झोके के लिये होता है जो बासी होता है, काम तो अपने द्वारा कमाये ताजा धन से ही चलता है।

सास महात्मा के पैरों मे गिर पड़ी और उसको ताजी बासी का ज्ञान व अपनी बहू पर गर्व हुआ

इसलिये मानव को हमेशा जुड़े धन पर आश्रित नहीं रहना चाहिये वल्कि सदैव ताजे धन की ओर ललायित रहना चाहिये..

अगर हम जुडे धन पर ही आश्रित रहेंगे तो वो भी एक दिन खत्म हो जायेगा इसलिये हमे ताजा धन की आस करके सदैव प्रगति पथ पर निरंतर प्रवाह करना चाहिये ।

योगाचार्य विनय पुष्करणा

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

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