विदेशी तथा भारतीय नववर्ष एवं हर्ष में अंतर

by December 31, 2016 0 comments

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है

अपना ये त्यौहार नहींहै
अपनी ये तो रीत नहींहै
अपना ये व्यवहार नहीं

धरा ठिठुरती है शीत से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है

सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं

चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही

ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो

प्रकृति दुल्हन का रूप धर
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लाएगा

तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय-गान सुनाया जायेगा

विबुधः परिवार की ओर से जनहित में प्रकाशित।
विबुधः संस्थापक पूजा पुष्करणा

Vibudhah

Writers:- Rajan Pushkarna, Viney Pushkarna, Pooja Pushkarna, Vibudhah Office

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