सर्वप्रथम आपका विबुधः टेबलायड सेवा में पुनः स्वागत है। आशा है कि आपको हमारे पूर्व लिखित लेख पसंद आये होंगे और आपने पूर्व प्रकाशित ज्ञान को आपने दैनिक जीवन में अपनाया होगा। तो आज मैं डॉ. राजन पुष्करणा आप सबको लिए जा रहा हूँ एक और ज्ञान वर्धक सफर पर। इस सफर में मेरे साथ श्रीमती नीरज पुष्करणा मेरा साथ देंगी।
तो सर्वप्रथम हम बात करते हैं भारत की
भारत:- भारत एक प्राचीन एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर चलने वाला बेहद संस्कारिक एवं अद्भुत देश है। जिस भूमि पर अनेकों ऋषि मुनियों एवं गुरुजन ने जन्म लिया, उनके विवेक, विज्ञान एवं साकारात्मक स्वभाव ने भारत का निर्माण किया। जैसे प्रत्येक देश की एक अलग वेशभूषा है वैसे ही भारत की एक अपनी एवं वैज्ञानिक पहचान है ।
वेषभूषा की बात करते हैं तो सर्वप्रथम बात आती है वस्त्र शैली की तो भारत सबसे प्राचीन एवं आध्यात्मिक सभ्यता का देश है इसमें चाहे प्रत्येक प्रांत की अलग अलग वस्त्र शैली है परन्तुं सबमे एक समान्यता एवं विज्ञान स्थित है, और उसी ज्ञान की चर्चा आज हम करने जा रहे हैं।
भारत वस्त्र शैली:- भारत में अनेकता में एकता का उदहारण इसकी सभ्यता एवं अखण्डता से पहले ही मिलता है। भारत के प्रत्येक प्रांत में अलग अलग प्रकार से एक पौशाक को धारण किया जाता है (प्राचीन वस्त्र शैली के अनुसार) जिसमे पंजाब, गुजरात, मध्य्प्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रत्येक प्रांत को लिया जा सकता है। इन सब क्षेत्रों में धौति एवं कुर्ते का इस्तेमाल होता है जिनको बांधने के ढंग एवं भाषा रूपांतर को मध्यनजर रखते हुए अलग अलग नाम दिए गए हैं। जैसे पंजाब में कुर्ता - चादरा, साऊथ में लुंगी - कुर्ता, और धौति कुर्ता कहा जाता है।
क्यों है भारतीय वस्त्र शैली उत्तम:- हम किसी देश की वस्त्र शैली को बुरा एवं नीच दिखने के लिए भारत वस्त्र शैली को उत्तम नहीं बता एवं दर्शा रहे अपितु साकारात्मक एवं वैज्ञानिक तथ्यों के अधार पर इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि भारतीय वस्त्र शैली सभी वस्त्र शैलियों में से उत्तम है।
इन तथ्यों पर अग्रेक्षित चर्चा से पूर्व मैं आपको पहले वस्त्रों एवं मानव सम्बन्ध का व्याख्यान करना चाहूंगा।
1. शारीरिक सन्दर्भ से वस्त्रों की महत्वता
शरीर की नग्नता को छुपाने के इलावा वस्त्र हमें ठण्ड, गर्मी, हवा, जल से बचाने के कार्य भी आते हैं इस रूप से वस्त्र सर्वप्रथम मानव रक्षक हैं और प्रथम सम्बन्ध मैत्री एवं रक्षण है।
2. मानसिक सन्दर्भ से वस्त्रों की महत्वता
मानसिक सन्दर्भ से वस्त्र दो प्रकार से महत्त्व हैं
अ.) वस्त्र व्यक्ति का स्वभाव एवं व्यक्तित्व पहिचान करने के काम आते हैं ।
ब.) वस्त्र व्यक्ति के रवैया को प्रभावित करते हैं।
अ.) एक व्यक्ति वस्त्रों का चयन अपने स्वभाव के अनुरूप करता है। जो व्यक्ति सदैव साफ़ सुथरे एवं इस्त्री किए हुए वस्त्र धारण करता है वो व्यक्ति सदैव सतर्क एवं अनुशासन प्रिय होगा, वहीँ जो व्यक्ति साधारण वस्त्र धारण करता होगा वो मिलनसार और खुशमिज़ाज़ होगा, जो व्यक्ति सिलवटों वाले वस्त्र धारण करता है वो सुस्त स्वभाव का होगा और जो बहुत तंग, भड़कीले, नए नए प्रकार के वस्त्रों को धारण करता है वो बहुत चतुर एवं दोखेबाज़ किस्म का व्यक्तित्व रखता है। सामान्य शब्दों में कहें तो वस्त्र व्यक्ति के स्वभाव एवं व्यक्तित्व को बता देते हैं। इस लिए प्रत्येक व्यक्ति को वस्त्र उसके कर्म एवं परियोजन अनुसार भी पहनने चाहिए जैसे कोई व्यक्ति अगर इंटरव्यू के लिए जा रहा है तो साफ़ सुथरे इस्त्री किये हुए वस्त्र धारण करके ही जायेगा।
ब.) यह आगे दो प्रकार के मानसिकता में बंटा होता है ।
ब 1.) हम अपने ज़ज़्बातों को ज़ाहिर करने के लिए भी वस्त्रों का चयन करते हैं भाव अगर हम खुश हैं तो हम ऐसे वस्त्रों का चयन करेंगे जिनसे हमारी ख़ुशी का औरों को पता चल पाये एवं हम दिखने में सुन्दर लगें। ऐसे ही कुछ व्यक्ति अपना रुतबा बनाने एवं दिखाने के लिए भी वस्त्रों का चयन करते है।
ब 2.) वहीँ दूसरी तरफ अगर हम तंग एवं गंदे वस्त्रों का चयन करेंगे तो हम असहज वं बेचैनी महसूस करेंगे। इससे पता चलता है कि कैसे वस्त्र व्यक्ति के रवैये को प्रभावित करते हैं।
"आर्थर एंडरसन" एक इंग्लैंड की संस्था है जिसने इस विषय पर अनुसंधान किया है जिसमे उन्होंने अपनी संस्था में कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों को सहज एवं सात्विक प्रधान खुले वस्त्रों का आंबटन किया जिससे उन्होंने कुछ ही सप्ताहों में अपने निर्णय के परिणाम देखें जिसमे उनके सभी कर्मचारीयों के कार्यशैली में एक साकारात्मक बदलाव आया और उनकी संस्था को भारी मुनाफा आया।
3. आध्यात्मिक सन्दर्भ से वस्त्रों की महत्वता
आध्यात्मिक सन्दर्भ से वस्त्रों की महत्वता को हम नीचे दिए मापदंडों को मध्यनजर रखते हुए बाँट सकते हैं।
3. क) वस्त्र जो धर्माचरण का प्रतिबिंद होते हैं वो मनुष्य को पाप कर्मों से बचाते हैं।
भाव धर्माचरण में इस्तेमाल होने वाले वस्त्र जैसे धौति-कुर्ता, उपर्ण (एक छोटा कपडा कंधे पर से शरीर को ढकने हेतु) अथवा कुर्ता, गंध (चन्दन की लकड़ी की पेस्ट) माला आदि जो कि बाहरी जगत के लिए धर्माचरण की पहिचान है, वो मनुष्य को गलत राह एवं अधर्म के राह पर चलने से रोकते है।
3. ख) धारण किए वस्त्र वातावरण से तरंगों को व्यक्ति की ओर आकर्षित करतीं हैं।
जब कोई व्यक्ति वस्त्र धारण करता है तो उन वस्त्रों का तन से परस्पर घर्षण एवं स्पर्श वातावरण में विध्यमान तरंगों को मनुष्य के तन की ओर आकर्षित करतीं हैं।
3. ग) सनातन धर्म अनुसार बताए वस्त्र ग्रहण से शिव-शक्ति का संचार होता है।
सनातन धर्म में बताये गए पुरुष एवं स्त्री के वस्त्र उनके आराध्य पर निर्धारित होते हैं जो कि शिव और शक्ति के सिद्धांतों पर निर्धारित हैं। स्त्री की वस्त्र शैली भाव साड़ी एवं पुरुष के वस्त्र आभूषण धौति अंगवस्त्र वास्तविक पहिचान का बौद्ध करवाते हैं जो हमारी आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होने से बचाती हैं और सकरात्मक शक्ति का प्रवाह हमारे तन में करती है।
3. घ) भारतीय वस्त्र शैली अनुसार धारण किए गए वस्त्र चैतनय को आकर्षित करते हैं|
दो उद्धरण ले लेते हैं
1. कुरता पजामा:- पहना हुआ कुरता पजामा शरीर के इर्द गिर्द अंडाकार सुरक्षा म्यान बनाता है, जो व्यक्ति के लिए वातावरण से चैतन्य आत्मसात करना सरल कर देता है और रजो-तमो गुणों से मुकाबला करता है।
2. धौती ( साफ़ सुथरी धोती):- धौती कुरते पजामे से बहुत सात्विक होती है क्योकिं यह व्यक्ति के शरीर के इर्द गिर्द सूक्षम गोलाकार सुरक्षा म्यान बनाती है जो कि दैविक मारक तारक एवम् सगुण-निर्गुण सिद्धान्तों को आत्मसार करना सरल कर देती है
3. ड़) वस्त्र शैली आपके वस्त्रों की सात्विकता निर्धारित करती हैं।
टेबल:- वस्त्र एवम् वस्त्र शैली vs सात्विक शक्ति
1. नौं गज़ साड़ी एवम् धौती :- अधिकतम
2. छह गज़ साड़ी
अ) बाएं कंधें पर पल्लू का खुला भाग:- अधिक
आ) दायें कंधे पर पल्लू का खुला भाग:- न्यून
3. लूंगी:- कम
4. चूड़ीदार:- छह गज़ साड़ी से कम
अ) दोनों कन्धों पर दुपट्टा:- अधिक
आ) एक कंधे पर दुपट्टा:- न्यूनतम
3. च) नकरात्मक शक्तियों से सुरक्षा
1. अशुद्ध एवम् नग्न रहने से आप नकरात्मक शक्ति के संकट में आ सकते हैं।
2. नकरात्मक ऊर्जा के संकट से बचाने हेतु शिशु को नग्न न छोड़ एक कपड़े में लपेटा जा सकता है।
3. भारतीय वस्त्र शैली नकरात्मक ऊर्जा के प्रवाह को व्यक्ति से शरीर पर होने से रोकता है।
4. साड़ी नकरात्मक ऊर्जा को ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित करती है जिससे पताल की नकरात्मक ऊर्जा का परवाह ऊपर की और एवम् नारी के तन एवम् मन पर नहीं हो पता।
4. वो घटक जो वस्त्रों में सात्विकता को प्रदर्शित करते हैं।
4. क) प्रत्येक पदार्थ सकरात्मक एवम् नकरात्मक गुण रखता है जो कि इसके निहित चरित्र पर आधारित होता है। प्रत्येक वस्तु जो हमारे इर्द गिर्द है उसका कोई न कोई प्रभाव हम पर लगातार पड़ता रहता है, इस लिए यह जरूरी है कि हमारे आस पास की सभी वस्तुएं सात्विक ऊर्जा का प्रवाह करें। और वस्तुओं के भांति देखा जाए तो वस्त्र हमारे शरीर के सबसे नज़दीक हैं।
4. ख) वस्त्रो की सात्विकता वस्त्र के प्रकार, वस्त्रों के रंग, वस्त्रों पर किस प्रकार की कलाकारी और किस प्रकार से वस्त्रों को सिला गया है पर निर्भर करती है।
आपस्तम्बधर्मसूत्र (1.5.15.8-9) श्लोक:- शक्तिविषये न मुहूर्तमप्यप्रयतः स्यात्। नग्नो वा।
भाव:- अगर संभव हो तो एक क्षण भर भी नग्न यां अशुद्ध हो कर न बैठें।
5. सात्त्विक प्रकार से वस्त्र शैली
जैसे की उपरोक्त बताया गया कि वस्त्रों की सात्विकता उनकी सात्विक व्यवस्था पर निर्भर करती है, जैसे की नौं यां छह गज़ की साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज, धोती, सवाल-उपरना ( रेशम की धौती), कुरता पजामा, जो व्यक्ति को निर्गुण से सगुण में ले जाता है
5. क) सात्विक वस्त्र शैली के लाभ
अगर अंतर्वस्त्र एवम् बाह्यवस्त्र साफ़ सुथरे और सात्विक हों, और सात्विक आकार में बने हों तो निम्नलिखित लाभ देंगे:-
5.क. 1) बाह्यवस्त्र वातावरण से चैतन्य को उच्चतम स्तर पर ग्रहण कर, शरीर को प्रदान कर सकता है।
5.क. 2) वस्त्र सगुण चैतन्य सक्रिय करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही निर्गुण सिद्दांत के बल पर अंतर्मुखी रवैया हर गतिविधि में कर्म करने लिए ऊर्जा प्रदान करते है।
5.क. 3) अगर कपडे आध्यात्मिक नज़रिये से साफ़ सुथरे हैं, तब व्यक्ति विनम्रता को आत्मसार करता है। यह विनम्रता, एवम् शील स्वभाव स्वयं को आध्यात्मिक स्तर पर संचालित करने के लिए प्रेरित करता है। जब भाव आध्यात्मिक वहव्हार को परिणाम के रूप में विकसित करता है, तो ईश्वर प्राप्ति हेतु व्यक्ति की यात्रा आरम्भ होती है।
इस प्रकार भारतीय वस्त्रशैली व्यक्ति को अध्यात्म, स्वास्थ्य एवम् चैतन्य प्रदान करते हैं, वहीँ आज के पश्चमी सभ्यता के वस्त्र कलयुग के प्रभाव से जो वातावरण में तमो गुण प्रधान है उसको बढ़ा कर राक्षसी आचरण को बढ़ावा देते हैं, इसी लिए मनुष्य भारतीय संस्कृति को छोड़ विकृत हो गया है।
और यह विकृति उनके वस्त्र धारण करने में स्पष्ट है। जानवरों, भूतों की छपाई वाले, फाटे - कटे रंगीन धागे लटकने वाले वस्त्र जो शरीर को ढकने के बजाए दिखाते हैं, इन्हीं की वजह से नकरात्मक सोच एवम् उससे होने वाली कठिनायों के शिकार होते हैं।
अतः भारतीय वस्त्र शैली सर्वोत्तम वस्त्रशैली निर्धारित होती है क्यों की इसमें सबसे अधिक सात्विक गुणों का समावेश होता है। भारतीय वस्त्र शैली अपनाएं। तन को पुर्णतः ढकें तथा ग्रीष्म में हवादार खुले खुले एवं शरद में गर्म वस्त्र धारण करें। गोलाकार सुरक्षा घेरे को बढ़ावा देने वाले वस्त्रों का चयन अधिक करें तथा शरद में आप अंडाकार सुरक्षा घेरे का चयन भी कर सकते हैं।
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