गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री सनातन एवं अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि ‘‘सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था, इसी गायत्री की साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई। गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्माजी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया। गायत्री को वेदमाता कहते हैं। चारों वेद, गायत्री की व्याख्या मात्र हैं।’’ गायत्री को जानने वाला वेदों को जानने का लाभ प्राप्त करता है।
गायत्री के 24 अक्षर 24 अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं के प्रतीक हैं। वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि में जो शिक्षाएँ मनुष्य जाति को दी गई हैं, उन सबका सार इन 24 अक्षरों में मौजूद है। इन्हें अपनाकर मनुष्य प्राणी व्यक्तिगत तथा सामाजिक सुख-शान्ति को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकता है। गायत्री गीता, गंगा और गौ यह भारतीय संस्कृति की चार आधारशिलायें हैं, इन सबमें गायत्री का स्थान सर्व प्रथम है। जिसने गायत्री के छिपे हुए रहस्यों को जान लिया, उसके लिए और कुछ जानना शेष नहीं रहता।
समस्त धर्म ग्रन्थों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कण्ठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा बताने वाला साहित्य भरा पड़ा है। उसका संग्रह किया जाय, तो एक बड़ा ग्रन्थ ही बन सकता है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूँ।
गायत्री उपासना के साथ-साथ अन्य कोई उपासना करते रहने में कोई हानि नहीं। सच तो यह है कि अन्य किसी भी मन्त्र का जाप करने में या देवता की उपासना में तभी सफलता मिलती है, जब पहले गायत्री द्वारा उस मंत्र या देवता को जाग्रत कर लिया जाए। कहा भी है-
यस्य कस्यापि मन्त्रस्य पुरश्चरणमारभेत्।
व्याहृतित्रयसंयुक्तां गायत्रीं चायुतं जपेत्।।
नृसिंहार्कवराहाणां तान्त्रिक वैदिकं तथा।
बिना जप्त्वातु गायत्रीं तत्सर्वं निष्फल भवेत।।
चाहे किसी मंत्र का साधन किया जाए। उस मंत्र को व्याहृति समत गायत्री सहित जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य, वराह आदि किसी की उपासना हो या वैदिक एवं तान्त्रिक प्रयोग किया जाए, बिना गायत्री को आगे लिए वे सब निष्फल होते हैं। इसलिए गायत्री उपासना प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है।
गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मन्त्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मन्त्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, स्वल्प, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है।
सम्पादक
बीरबल मुदगल
(Source Saffron Tigers Musical Group)
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